पंचक बोध :- पंचक क्या होते हैं ?
पंचक बोध :-
धनिष्ठा के उत्तरार्य से रेवती नक्षत्र तक साढ़े चार नक्षत्रों को पंचक कहा गया है। पंचकों के समय में निम्नलिखित कार्य नहीं करने चाहिए। जैसे:- दक्षिण दिशा की ओर यात्रा करना, नए घर का बनाना, छत को डालना, घास-फूस आदि की झोपड़ी बनाना, चारपाई दुनना, वृक्ष काटना, ताम्बा, पीतल आदि का नया वर्तन मोल लेना, मुर्दे को जलाना आदि कार्य पनिष्ठादि पंचक नक्षत्रों में नहीं करने चाहिए।
यदि किसी बच्चे, बूढ़े, जवान की मृत्यु पंचकों में हो जाती है तो उसके उपाय हेतु कुशा की पाँच मूर्तियां (मनुष्याकृत्ति) बना लें, फिर ऊनी धागे बाँध और जो का आटा भी उपर्युक्त मूर्तियों को लगा कर रख लें। जब मूर्दे (शव) को चिता पर लैटाया जाता है तब पहली मूर्ति को “ॐ प्रेतवाहनाय नमः” मन्त्र बोल का सिर पर, दूसरी मूर्ति को ‘ॐ प्रेतसखाय नमः” मन्त्र बोलकर नेत्रों पर, तीसरी मूर्ति को ‘ॐ प्रेतमयाय नमः” मन्त्र बोलकर बाई कोरव पर, चौथी मूर्ति को ‘ॐ प्रेतभूमियाय नम’ मन्त्र बोल कर नाभि पर, पाँचवी मूर्ति को ‘ॐ प्रेवहर्त्रे नमः’ मन्त्र बोलकर पैर पर रखना चाहिए। उसके बाद चित्ता में अग्नि दे कर ऊपर लिखे मन्त्रों से शान्ति के लिए घी की आहुति भी देनी चाहिए। हुए अन्यथा घर, कारोबार आदि में अनेक बाधाएँ उत्पन्न हो जाती है। क्योंकि कहा गया है:
बालवृद्धश्च यूनश्च पंचकेषु मृतस्य च ।