जन्म कुण्डली के किस भाव से संतान सुख का विचार करें ?
जन्म कुण्डली के किस भाव से संतान सुख का विचार करें ?
जन्म लग्न और चन्द्र लग्न में जो बली हो, उससे पांचवें भाव से संतान सुख का विचार किया जाता है। भाव, भाव स्थित राशि व उसका स्वामी, भाव कारक बृहस्पति और उससे पांचवां भाव तथा सप्तमांश कुण्डली, इन सभी का विचार संतान सुख के विषय में किया जाना आवश्यक है। पति एवं पत्नी दोनों की कुण्डलियों का अध्ययन करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए।
पंचम भाव से प्रथम संतान का, उससे तीसरे भाव से दूसरी संतान का और उससे तीसरे भाव से तीसरी संतान का विचार करना चाहिए। उससे आगे की संतान का विचार भी इसी क्रम से किया जा सकता है।
कुण्डली का पांचवां घर संतान भाव के रूप में विशेष रूप से जाना जाता इसी भाव से संतान कैसी होगी एवं माता-पिता से उनका किस प्रकार का सम्बन्ध होगा इसका आंकलन करते हैं। इस भाव में स्थित ग्रहों को देखकर व्यक्ति काफी कुछ जान सकता है। जैसे :
पांचवें भाव में सूर्य : पांचवें भाव में सूर्य का नेक प्रभाव होने से संतान जब गर्भ में आती है तभी से व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होना शुरू हो जाता है। इनकी संतान जन्म से ही भाग्यवान होती है। यह अपने बच्चों पर जितना खर्च करते हैं उन्हें उतना ही शुभ परिणाम प्राप्त होता है। सुख नहीं मिल पाता है। वैचारिक मतभेद के कारण बच्चे माता-पिता के साथ नहीं रह पाते हैं।
पांचवें भाव में चन्द्रमा: चन्द्रमा पांचवें भाव में संतान का पूर्ण सुख देता है। संतान की शिक्षा अच्छी होती है। व्यक्ति अपने बच्चों के भविष्य के प्रति जागरूक होता है। व्यक्ति जितना उदार और जनसेवी होता है बच्चों का भविष्य उतना ही उत्तम होता है। इस भाव का चन्द्रमा अगर पाप प्रभाव में हो तो संतान के विषय में मंदा फल देता है।
मंगल अगर पाँचवें भाव में है तो संतान मंगल के समान पराक्रमी और साहसी होगी संतान के जन्म के व्यक्ति का पराक्रम और प्रभाव बढ़ता है। शत्रु का भय इन्हें नहीं सताता है।
पाँचवें भाव में बुध: बुध का पाँचवें भाव में होना इस बात का है कि संतान बुद्धिमान और गुणी होगी। संतान की शिक्षा होगी। अगर व्यक्ति चाँदी धारण करता है तो वह संतान के लिए लाभप्रद होता है। संतान के हित में पंचम भाव में बुध वाले व्यक्ति को अकारण विवादों में नहीं उलझना चाहिए अन्यथा संतान से मतभेद होता है।
पाँचवें भाव में गुरु: पंचम भाव में गुरु शुभ होने से संतान के सम्बन्ध में शुभ परिणाम प्राप्त होता है। संतान के जन्म के पश्चात व्यक्ति का भार बसी होता है और कामयाबी मिलती है। संतान बुद्धिमान और नेक होती है। अगर गुरु पाप प्रभाव में हो तो संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। पाप प्रभाव में गुरू वाले व्यक्ति को गुरु का उपाय करना चाहिए।
पाँचवें भाव में शुक्र: पाँचवें भाव में शुक्र का प्रभाव शुभ होने से संतान के विषय में शुभ फल प्राप्त होता है। इनके घर संतान का जन्म होते ही धन का आगमन तेजी से होता है। व्यक्ति अगर सचरित होता है तो उसकी संतान प्रसिद्ध होती है। अगर व्यक्ति अपने व्यय और का ध्यान नहीं रखता है तो संतान के जन्म के पश्चात कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना होता है
पाँचवें भाव में शनि: शनि पाँचवें भाव में होने से संतान सुख प्राप्त होता है। शनि के प्रभाव से संतान जीवन में अपनी मेहनत और लगन से उन्नति करती है। इनकी संतान स्वयं काफी धन सम्पत्ति अर्जित करती है। अगर शनि इस भाव में पाप प्रभाव में होता है तो कन्या संतान की ओर से व्यक्ति को परेशानी होती है।
पाँचवें भाव में राहु: पाँचवें भाव में राहु होने से संतान सुख विलम्ब से प्राप्त होता है। अगर राहु शुभ स्थिति में हो तो पुत्र सुख की संभावना प्रवल रहती है। पाप प्रभाव में राहु पुत्र संतान को कष्ट देता है।
पाँचवें भाव में केतु: केतु भी राहु के समान अशुभ ग्रह है लेकिन पंचम भाव में इसकी उपस्थिति शुभ हो तो संतान के जन्म के साथ ही व्यक्ति को आकस्मिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
🙏 Astrologer Sudesh Sharma